Abstract
“ग्यारहवीं–A के लड़के” गौरव सोलंकी की छह कहानियों का संग्रह है जो वर्तमान सामाजिक जीवन एवम् उसकी नैतिकता के बीच जूझ रहे युवाओं की मनोस्थिति को चित्रित करती हैं. जीवन की निर्थकता के साथ-साथ अधूरे प्यार की प्राप्ति एवम् भावनाओं के बाजारीकरण की वर्तमान स्थिति को दर्शाती हैं. ये कहानियाँ हमारे आस-पास के चरित्रों को लेखन से जीवन्त कर देती है और जाने –अनजाने ये चरित्र हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं. वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों की व्याख्या और उनके व्यावहारिक प्रयोग के बीच का अंतर हम इन कहानियों में अच्छे से देख सकते हैं. आज का युवा भावनाओं में बहता हुआ कैसे हिंसा और स्वार्थपन के चरम पर जा रहा है और वह अपने पतन से रूबरू होते हुए भी उसी दिशा में अपना फायदा देखता है. गौरव, स्वयम इन कहानियों को लिखते समय की अपनी मनसिकता का वर्णन ऐसे करता है, “वह सबसे अँधेरा वक्त था. कभी कभी मार्केज याद आते थे जिन्होंने लिखा था कि इस यातना को जी भर के भोग लो जब तक जवान हो, क्योंकि ये सब हमेशा नहीं रहेगा” (पृ.11) किसी न किसी कहानी में पाठक स्वयं को भी उन प्रश्नों से घिरा पाता है जो जाने अनजाने कहानी से निकल कर उसे विचलित कर देते हैं. लेखक बड़े अच्छे ढंग से पाठक को इन कहानियों के आधार से रूबरू करवाता है.